Hindi Contemporary Version 2019

2 शमुएल 22:1-51

दावीद-रचित आभार गान

1जब याहवेह ने दावीद को उनके शत्रुओं तथा शाऊल के आक्रमण से बचा लिया था, तब दावीद ने यह गीत याहवेह के सामने गाया: 2दावीद ने कहा:

“याहवेह मेरी चट्टान, मेरा गढ़ और मेरे छुड़ानेवाले हैं.

3मेरे परमेश्वर, जिनमें मैं आसरा लेता हूं, मेरे लिए चट्टान हैं.

वह मेरी ढाल और मेरे उद्धार का सींग हैं.

वह मेरा गढ़, मेरी शरण और मेरा छुड़ाने वाला हैं,

जो कष्टों से मेरी रक्षा करते हैं.

4“मैं दोहाई याहवेह की देता हूं, सिर्फ वही स्तुति के योग्य हैं,

और मैं शत्रुओं से छुटकारा पा लेता हूं.

5मृत्यु की लहरों में घिर चुका था;

मुझ पर विध्वंस की तेज धारा का वार हो रहा था.

6अधोलोक के तंतुओं ने मुझे उलझा लिया था;

मैं मृत्यु के जाल के आमने-सामने आ गया था.

7“अपनी वेदना में मैंने याहवेह की दोहाई दी;

मैंने अपने ही परमेश्वर को पुकारा.

अपने मंदिर में उन्होंने मेरी आवाज सुन ली,

उनके कानों में मेरा रोना जा पड़ा.

8पृथ्वी झूलकर कांपने लगी,

आकाश की नींव थरथरा उठी;

और कांपने लगी. क्योंकि वह क्रुद्ध थे.

9उनके नथुनों से धुआं उठ रहा था,

उनके मुख की आग चट करती जा रही थी,

उसने कोयलों को दहका रखा था.

10उन्होंने आकाशमंडल को झुकाया, और उतर आए;

उनके पैरों के नीचे घना अंधकार था.

11वह करूब पर चढ़कर उड़ गए;

वह हवा के पंखों पर चढ़कर उड़ गये!

12उन्होंने अंधकार ओढ़ लिया, वह उनका छाता बन गया,

घने-काले वर्षा के मेघ में घिरे हुए.

13उनके सामने के तेज से

कोयलों में आग जल गई.

14स्वर्ग से याहवेह ने गर्जन की,

और परम प्रधान ने अपने शब्द सुनाए.

15उन्होंने बाण छोड़े, और उन्हें बिखरा दिया.

बिजलियों ने उनके पैर उखाड़ दिए.

16याहवेह की प्रताड़ना से,

नथुनों से उनके सांस के झोंके से,

सागर के जलमार्ग दिखाई देने लगे;

संसार की नीवें खुल गई.

17“उन्होंने स्वर्ग से हाथ बढ़ा मुझे थाम लिया;

प्रबल जल प्रवाह से उन्होंने मुझे बाहर निकाल लिया.

18उन्होंने मुझे मेरे प्रबल शत्रु से मुक्त किया,

उनसे, जिन्हें मुझसे घृणा थी.

वे मुझसे कहीं अधिक शक्तिमान थे.

19संकट के दिन उन्होंने मुझ पर आक्रमण कर दिया था,

किंतु मेरी सहायता याहवेह में मगन थी.

20वह मुझे खुले स्थान पर ले आए;

मुझसे अपनी प्रसन्‍नता के कारण उन्होंने मुझे छुड़ाया है.

21“मेरी भलाई के अनुसार ही याहवेह ने मुझे प्रतिफल दिया है;

मेरे हाथों की स्वच्छता के अनुसार उन्होंने मुझे ईनाम दिया है.

22मैं याहवेह की नीतियों का पालन करता रहा हूं;

मैंने परमेश्वर के विरुद्ध कोई दुराचार नहीं किया है.

23उनके सारे नियम मेरे सामने बने रहे;

उनके नियमों से मैं कभी भी विचलित नहीं हुआ.

24मैं उनके सामने निर्दोष बना रहा.

दोष भाव मुझसे दूर ही दूर रहा.

25इसलिये याहवेह ने मुझे मेरी भलाई के अनुसार ही प्रतिफल दिया है,

उनकी नज़रों में मेरी शुद्धता के अनुसार.

26“सच्चे लोगों के प्रति आप स्वयं विश्वासयोग्य साबित होते हैं,

निर्दोष व्यक्ति पर आप स्वयं को निर्दोष ही प्रकट करते हैं,

27वह, जो निर्मल है, उस पर अपनी निर्मलता प्रकट करते हैं,

कुटिल व्यक्ति पर आप अपनी चतुरता प्रगट करते हैं.

28विनम्र व्यक्ति को आप छुटकारा प्रदान करते हैं,

मगर आपकी दृष्टि घमंडियों पर लगी रहती है, कि कब उसे नीचा किया जाए.

29याहवेह, आप मेरे दीपक हैं;

याहवेह मेरे अंधकार को ज्योतिर्मय कर देते हैं.

30जब आप मेरी ओर हैं, तो मैं सेना से टक्कर ले सकता हूं;

मेरे परमेश्वर के कारण मैं दीवार तक फांद सकता हूं.

31“यह वह परमेश्वर हैं, जिनकी नीतियां खरी हैं:

ताया हुआ है याहवेह का वचन;

अपने सभी शरणागतों के लिए वह ढाल बन जाते हैं.

32क्योंकि याहवेह के अलावा कोई परमेश्वर है?

और हमारे परमेश्वर के अलावा कोई चट्टान है?

33वही परमेश्वर मेरे मजबूत आसरा हैं;

वह निर्दोष व्यक्ति को अपने मार्ग पर चलाते हैं.

34उन्हीं ने मेरे पांवों को हिरण के पांवों के समान बना दिया है;

ऊंचे स्थानों पर वह मुझे सुरक्षा देते हैं.

35वह मेरे हाथों को युद्ध की क्षमता प्रदान करते हैं;

कि अब मेरी बांहें कांसे के धनुष तक को इस्तेमाल कर लेती हैं.

36आपने मुझे छुटकारे की ढाल दी है;

आपकी सहायता ने मुझे विशिष्ट पद दिया है.

37मेरे पांवों के लिए आपने चौड़ा रास्ता दिया है,

इसमें मेरे पगों के लिए कोई फिसलन नहीं है.

38“मैंने अपने शत्रुओं का पीछा कर उन्हें नाश कर दिया है;

जब तक वे पूरी तरह नाश न हो गए, मैं लौटकर नहीं आया.

39मैंने उन्हें ऐसा पूरी तरह कुचल दिया

कि वे पुनः सिर न उठा सकें; वे तो मेरे पैरों में आ गिरे.

40शक्ति से आपने मुझे युद्ध के लिए सशस्त्र बना दिया;

आपने उन्हें, जो मेरे विरुद्ध उठ खड़े हुए थे, मेरे सामने झुका दिया.

41आपने मेरे शत्रुओं को पीठ दिखाकर भागने पर विवश कर दिया, जो मेरे विरोधी थे.

मैंने उन्हें नष्ट कर दिया.

42वे आशा ज़रूर करते रहे, मगर उनकी रक्षा के लिए कोई भी न आया.

यहां तक कि उन्होंने याहवेह की भी दोहाई दी, मगर उन्होंने भी उन्हें उत्तर न दिया.

43मैंने उन्हें पीसकर भूमि की धूल के समान बना दिया;

मैंने उन्हें कुचल दिया, मैंने उन्हें गली के कीचड़ के समान रौंद डाला.

44“आपने मुझे सजातियों के द्वारा उठाए कलह से छुटकारा दिया है;

आपने मुझे सारे राष्ट्रों पर सबसे ऊपर बनाए रखा;

अब वे लोग मेरी सेवा कर रहे हैं, जिनसे मैं पूरी तरह अपरिचित हूं.

45विदेशी मेरे सामने झुकते आए;

जैसे ही उन्हें मेरे विषय में मालूम होते ही वे मेरे प्रति आज्ञाकारी हो गए.

46विदेशियों का मनोबल जाता रहा;

वे कांपते हुए अपने गढ़ों से बाहर आ गए.

47“जीवित हैं याहवेह! धन्य हैं मेरी चट्टान!

मेरे छुटकारे की चट्टान, मेरे परमेश्वर प्रतिष्ठित हों!

48परमेश्वर, जिन्होंने मुझे प्रतिफल दिया मेरा बदला लिया,

और जनताओं को मेरे अधीन कर दिया,

49जो मुझे मेरे शत्रुओं से मुक्त करते हैं.

आपने मुझे मेरे शत्रुओं के ऊपर ऊंचा किया है;

आपने हिंसक पुरुषों से मेरी रक्षा की है.

50इसलिये, याहवेह, मैं राष्ट्रों के सामने आपकी स्तुति करूंगा;

आपके नाम का गुणगान करूंगा.

51“अपने राजा के लिए वही हैं छुटकारे का खंभा;

अपने अभिषिक्त पर, दावीद और उनके वंशजों पर,

वह हमेशा अपार प्रेम प्रकट करते रहते हैं.”